क्या कभी आप सोचते है की जो अनाज आज आप  खा रहा है वह कितना शुद्ध है ?

आज हमें सोचने की जरूरत है क्यों की विश्वास का स्थान व्यवसाय ने लिये है और उस व्यवसाय का आधार केवल मुनाफावाद रह गया है|आज कृषि को जिस दिशा मे ले जाया जा रहा है, उसमे पोषण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है। लोग समझते हैं कि कृषि या पोषण का सम्बंध किसानों से है, लेकिन यह गलत है।

लोगों को समझना चाहिए कि पोषण का सम्बंध स्वयं उनसे है। लोग जो खाते हैं, उसी से तय होता है कि किसान क्या पैदा करेगा और कैसे पैदा करेगा। आज यदि उपभोक्ता सचेत हो जाए, तो पूरा कृषि संकट समाप्त हो जाएगा। तो जरूरी है कि पोषण पर विचार किया जाए।

दुनिया में 1 अरब लोग भूखे हैं, जिसमें से एक चौथाई भारत में रहते हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का 63वां स्थान है, पिछले कई सालों से हम इसी रैंक के आसपास चल रहे हैं। तो जहां दुनिया में 1 अरब लोग भूखे हैं, वहीं 1.4 अरब लोग मोटापे से पीडित हैं।
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तीन अरब लोग दुनिया में अल्पोषित, कुपोषित हैं। कुपोषण की समस्या लगातार बढ़ रही है। इसका दो उदाहण मैं दूंगा - पहला उदाहरण - आजकल जो उन्नत बीज हम लगाते हैं गेहूं का, उसकी क्रॉस ब्रीडिंग 1960 के दशक में हो रही थी, उससे पैदावार बढ़ी, लेकिन उत्पादित अन्न की पोषण क्षमता कम हो गई। आज हम जिन प्रजातियों के गेहूं से बने आटे का सेवन कर रहे हैं, उनमें पोषण क्षमता बहुत कम है।

हरित क्रांति से पहले अपने देश में जो पौधे थे, उसमें 12 मुख्य पोषक तत्व हुआ करते थे। संकर प्रजाति का गेहूं आया, तो उसमें 6 पोषक तत्व खत्म-से हो गए। बाकी जो 6 तत्व शेष थे, उनमें भी पोषक तत्व 15 से 40 प्रतिशत कम हो गए।

एक मैं उदाहरण दूंगा, गेहूं में तांबा (कॉपर) तत्व की मात्रा 80 प्रतिशत तक घट गई है। यह देखने को मिल रहा है कि दुनिया में जब से ये उन्नत बीज आए हैं, कोलेस्ट्रॉल की समस्या बढ़ी है। यदि अनाज में तांबे की मात्रा कम नहीं होती, तो कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता, दुनिया में इतनी बड़ी संख्या में ह्वदय रोगी नहीं होते।


अब गाय की प्रजाति को लीजिए - अपने देश में "गाय हमारी माता है" नारा था, लेकिन अपनी गाय के दूध के महत्व को हमने नहीं जाना। अब पता चला है कि विदेशी नस्ल की गायों में एक जीन होता है ए-1, हमारी गायों मे ए-2 होता है। अब हम विदेशी गायों का दूध पी रहे हैं, तो मधुमेह, रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल की समस्या बढ़ रही है।

पहले ये बीमारियां ज्यादा नहीं थीं, लेकिन जब हमने विदेशी कृषि मॉडल अपनाया, तो अपनी कृषि को खराब कर दिया। हालात इस स्तर पर आ गए हैं कि गूगल के पैसे से एक ऎसा बर्गर बनने लगा है, जो पूरी तरह सिंथेटिक है। हम प्राकृतिक चीजों से कृत्रिम की ओर बढ़ रहे हैं। लोग अगर कृत्रिम या सिंथेटिक खाने लगेंगे, तो जाहिर है, उसी हिसाब से उत्पादन होगा। लोगों को ही तय करना होगा कि उन्हे खाने के लिए क्या चाहिए- प्राकृतिक या कृत्रिम?

आज कृषि की दुनिया में औद्योगिक ढंग वाली कृषि के लिए 70 प्रतिशत संसाधनों का दोहन होता है, लेकिन उत्पादन केवल 30 प्रतिशत होता है। दूसरी ओर, 30 प्रतिशत संसाधनों का इस्तेमाल करके हमारे छोटे किसान 70 प्रतिशत अनाज देते हैं।

औद्योगिक मॉडल की खेती में पानी का दोहन भी खूब होता है, जमीन जहरीली हो रही है, पौधे व पैदावार में भी जहर मिलने लगा है। ग्लोबल वार्मिग का भी नुकसान है। आम उपभोक्ता जब तक इन बातों को नहीं समझता, भोजन नहीं सुधरेगा, पोषण नहीं सुधरेगा।

उपभोक्ताओं को सावधान हो जाना चाहिए। उसे वह दूध मांगना चाहिए, जिसमें कीटनाशकों की मात्रा नहीं है, उसे वह अन्न मांगना चाहिए, जिससे बीमारियों को बढ़ावा नहीं मिलता है। जब हम शुद्ध और सही गुणवत्ता वाले कृषि पदार्थ मांगने लगेंगे, तो किसानों और नीति निर्माताओं को प्राकृतिक कृषि की ओर लौटना होगा।

यदि ऎसा हुआ, तो हम भूख का भी सामना कर पाएंगे। अभी हो यह रहा है कि छोटे किसानों को कृषि से बाहर निकाला जा रहा है। हम उनका महत्व नहीं समझ पा रहे हैं। एक अन्य खतरा भी है, कुछ देश दूसरे विकासशील देशों में जमीन हथियाने में जुटे हैं, ताकि वहां वे औद्योगिक ढंग से कृषि कर सकें और अनाज उत्पादन से अपने लोगों का पेट भर सके।

करीब 2500 लाख हेक्टेयर जमीन औद्योगिक खेती के कब्जे में है, भारत और चीन जैसे देश भी ऎसा कर रहे हैं। भारत भी अपनी खेती को नष्ट कर रहा है और चीन भी, ये देश विदेश में खेती करेंगे और अनाज अपने देश लाएंगे। चीन अपने यहां की किसान आबादी को तबाह करके बाहर के 31 देशों में खेती कर रहा है, यह कहां की समझदारी हुई? कृषि का यह नया मॉडल सबसे ज्यादा घातक होगा।
भारत भी इसी रास्ते पर है, हमारे प्रधानमंत्री कह रहे हैं - 70 प्रतिशत किसानों की जरूरत नहीं है। जाहिर है, कृषि बिगड़ेगी, तो सेहत दवाइयों पर ही टिकेगी। आज हर दूसरा आदमी दवाइयों पर टिका है। बच्चा पैदा होता है मधुमेह लेकर, जिंदगी भर दवाई खाना मजबूरी है। एक मित्र डॉक्टर कहते हैं, बीमार जनता को लंबे समय तक जीवित रखने का तरीका हमने सीख लिया है।

ध्यान दीजिए, औद्योगिक खेती के संसाधन व उत्पादन पशु आहार, बायोफ्यूल और प्रसंस्करण में लग रहे हैं। 2012 में दुनिया में जितना खाद्यान्न पैदा हुआ, उससे दोगुनी जनता को भोजन दिया जा सकता था। समस्या है कि 50 प्रतिशत खाना बर्बाद हो रहा है।

संग्रहण, वितरण ठीक करने की जरूरत है। खाद्य सुरक्षा के तहत रियायती अनाज देने की बजाय हम किसान को प्रोत्साहित करें, स्थानीय उत्पादन, संग्रहण, वितरण को बढ़ावा दें, तो खाद्य सुरक्षा तो स्वत: हो जाएगी। महात्मा गांधी ने कहा था, भारत में जनता के लिए उत्पादन व्यवस्था नहीं, बल्कि जनता द्वारा निर्मित जन-उत्पादन व्यवस्था चाहिए।


स्रोत - राजस्थान पत्रिका , लेखक - देविंदर शर्मा (कृषि व खाद्य सुरक्षा विशेषज्ञ)


आप भी सोचो की आप किस तरह अपना योगदान देंगे - कृषि की बर्बादी में या कृषि के सुनियोजित स्वस्थ विकास में
 
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                               आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने ।
               जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं नोपजायते ।।  


अर्थ : जो लोग सूर्यको प्रतिदिन नमस्कार करते हैं, उन्हें सहस्रों जन्म दरिद्रता प्राप्त नहीं होती ।

सूर्य-नमस्कार को सर्वांग व्‍यायाम भी कहा जाता है, समस्त यौगिक क्रियाऒं की भाँति सूर्य-नमस्कार के लिये भी प्रातः काल सूर्योदय का समय सर्वोत्तम माना गया है। सूर्यनमस्कार सदैव खुली हवादार जगह पर कम्बल का आसन बिछा खाली पेट अभ्यास करना चाहिये।इससे मन शान्त और प्रसन्न हो तो ही योग का सम्पूर्ण प्रभाव मिलता है।
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प्रथम स्थिति- स्थितप्रार्थनासन

सूर्य-नमस्कार की प्रथम स्थिति स्थित प्रार्थनासन की है।सावधान की मुद्रा में खडे हो जायें।अब दोनों हथेलियों को परस्पर जोडकर प्रणाम की मुद्रा में हृदय पर रख लें।दोनों हाथों की अँगुलियाँ परस्पर सटी हों और अँगूठा छाती से चिपका हुआ हो। इस स्थिति में आपकी केहुनियाँ सामने की ऒर बाहर निकल आएँगी।अब आँखें बन्द कर दोनों हथेलियों का पारस्परिक दबाव बढाएँ । श्वास-प्रक्रिया निर्बाध चलने दें।


द्वितीय स्थिति - हस्तोत्तानासन या अर्द्धचन्द्रासन

प्रथम स्थिति में जुडी हुई हथेलियों को खोलते हुए ऊपर की ऒर तानें तथा साँस भरते हुए कमर को पीछे की ऒर मोडें।गर्दन तथा रीढ की हड्डियों पर पडने वाले तनाव को महसूस करें।अपनी क्षमता के अनुसार ही पीछे झुकें और यथासाध्य ही कुम्भक करते हुए झुके रहें ।

तृतीय स्थिति - हस्तपादासन या पादहस्तासन


दूसरी स्थिति से सीधे होते हुए रेचक (निःश्वास) करें तथा उसी प्रवाह में सामने की ऒर झुकते चले जाएँ । दोनों हथेलियों को दोनों पँजों के पास जमीन पर जमा दें। घुटने सीधे रखें तथा मस्तक को घुटनों से चिपका दें यथाशक्ति बाह्य-कुम्भक करें। नव प्रशिक्षु धीरे-धीरे इस अभ्यास को करें और प्रारम्भ में केवल हथेलियों को जमीन से स्पर्श कराने की ही कोशिश करें।
चतुर्थ स्थिति- एकपादप्रसारणासन

तीसरी स्थिति से भूमि पर दोनों हथेलियाँ जमाये हुए अपना दायाँ पाँव पीछे की ऒर फेंके।इसप्रयास में आपका बायाँ पाँव आपकी छाती केनीचे घुटनों से मुड जाएगा,जिसे अपनी छाती से दबाते हुए गर्दनपीछे की ऒर मोडकर ऊपर आसमान कीऒर देखें।दायाँ घुटना जमीन पर सटा हुआ तथा पँजा अँगुलियों पर खडा होगा। ध्यान रखें, हथेलियाँ जमीन से उठने न पायें।श्वास-प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती रहे।

पंचम स्थिति- भूधरासन या दण्डासन

एकपादप्रसारणासन की दशा से अपने बाएँ पैर को भी पीछे ले जाएँ और दाएँ पैर के साथ मिला लें ।हाथों को कन्धोंतक सीधा रखें । इस स्थिति में आपका शरीर भूमि पर त्रिभुज बनाता है , जिसमें आपके हाथ लम्बवत् और शरीर कर्णवत् होते हैं।पूरा भार हथेलियों और पँजों पर होता है। श्वास-प्रक्रिया सामान्य रहनी चाहिये अथवा केहुनियों को मोडकर पूरे शरीर को भूमि पर समानान्तर रखना चाहिये। यह दण्डासन है।

षष्ठ स्थिति - साष्टाङ्ग प्रणिपात


पंचम अवस्था यानि भूधरासन से साँस छोडते हुए अपने शरीर को शनैःशनैः नीचे झुकायें। केहुनियाँ मुडकर बगलों में चिपक जानी चाहिये। दोनों पँजे, घुटने, छाती, हथेलियाँ तथा ठोढी जमीन पर एवं कमर तथा नितम्ब उपर उठा होना चाहिये । इस समय 'ॐ पूष्णे नमः ' इस मन्त्र का जप करना चाहिये । कुछ योगी मस्तक को भी भूमि पर टिका देने को कहते हैं ।
सप्तम स्थिति - सर्पासन या भुजङ्गासन

छठी स्थिति में थॊडा सा परिवर्तन करते हुए नाभि से नीचे के भाग को भूमि पर लिटा कर तान दें। अब हाथों को सीधा करते हुए नाभि से उपरी हिस्से को ऊपर उठाएँ। श्वास भरते हुए सामने देखें या गरदन पीछे मोडकर ऊपर आसमान की ऒर देखने की चेष्टा करें । ध्यान रखें, आपके हाथ पूरी तरह सीधे हों या यदि केहुनी से मुडे हों तो केहुनियाँ आपकी बगलों से चिपकी हों ।


अष्टम स्थिति- पर्वतासन


सप्तम स्थिति से अपनी कमर और पीठ को ऊपर उठाएँ, दोनों पँजों और हथेलियों पर पूरा वजन डालकर नितम्बों को पर्वतशृङ्ग की भाँति ऊपर उठा दें तथा गरदन को नीचे झुकाते हुए अपनी नाभि को देखें ।


नवम स्थिति - एकपादप्रसारणासन (चतुर्थ स्थिति)

आठवीं स्थिति से निकलते हुए अपना दायाँ पैर दोनों हाथों के बीच दाहिनी हथेली के पास लाकर जमा दें। कमर को नीचे दबाते हुए गरदन पीछे की ऒर मोडकर आसमान की ऒर देखें ।बायाँ घुटना जमीन पर टिका होगा ।

दशम स्थिति - हस्तपादासन


नवम स्थिति के बाद अपने बाएँ पैर को भी आगे दाहिने पैर के पास ले आएँ । हथेलियाँ जमीन पर टिकी रहने दें । साँस बाहर निकालकर अपने मस्तक को घुटनों से सटा दें । ध्यान रखें, घुटने मुडें नहीं, भले ही आपका मस्तक उन्हें स्पर्श न करता हो|
एकादश स्थिति - ( हस्तोत्तानासन या अर्धचन्द्रासन )

दशम स्थिति से श्वास भरते हुए सीधे खडे हों। दोनों हाथों की खुली हथेलियों को सिर के ऊपर ले जाते हुए पीछे की ऒर तान दें ।यथासम्भव कमर को भी पीछे की ऒर मोडें।

द्वादश स्थिति -स्थित प्रार्थनासन ( प्रथम स्थिति )

ग्यारहवीं स्थिति से हाथों को आगे लाते हुए सीधे हो जाएँ । दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में वक्षःस्थल पर जोड लें । सभी उँगलियाँ परस्पर जुडी हुईं तथा अँगूठा छाती से सटा हुआ । कोहुनियों को बाहर की तरफ निकालते हुए दोनों हथेलियों पर पारस्परिक दबाव दें।


सूर्य नमस्‍कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्‍येक बार सूर्य मंत्रो के उच्‍चारण से विशेष लाभ होता है, वे सूर्य मंत्र निम्‍न है-


1. ॐ मित्राय नमः 2. ॐ रवये नमः  3. ॐ सूर्याय नमः  4.ॐ भानवे नमः 
5.ॐ खगाय नमः  6. ॐ पूष्णे नमः 7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आदित्याय नमः 10.ॐ सवित्रे नमः, 11. ॐ अर्काय नमः 12. ॐ भास्कराय नमः 13. ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः
सूर्य नमस्कार के लाभ 
  • सभी महत्त्वपूर्ण अवयवोंमें रक्तसंचार बढता है।
  • सूर्य नमस्का‍र से विटामिन-डी मिलता है जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं।
  • आँखों की रोशनी बढती है।
  • शरीर में खून का प्रवाह तेज होता है जिससे ब्लड प्रेशर की बीमारी में आराम मिलता है।
  • सूर्य नमस्कार का असर दिमाग पर पडता है और दिमाग ठंडा रहता है।
  • पेटके पासकी वसा (चरबी) घटकर भार मात्रा (वजन) कम होती है जिससे मोटे लोगों के वजन को कम करने में यह बहुत ही मददगार होता है।
  • बालों को सफेद होने झड़ने व रूसी से बचाता है।
  • क्रोध पर काबू रखने में मददगार होता है।
  • कमर लचीली होती है और रीढ की हडडी मजबूत होती है।
  • त्वचा रोग होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
  •  हृदय व फेफडोंकी कार्यक्षमता बढती है।
  • बाहें व कमरके स्नायु बलवान हो जाते हैं ।
  • कशेरुक व कमर लचीली बनती है।
  • पचनक्रियामें सुधार होता है।
  • मनकी एकाग्रता बढती है।
  • जानकारों के मुताबिक सूर्य नमस्कार करते समय आप अपनी तंत्रिकाओं को पेल्विक बोन की ओर फैलाते और संकुचित करते हैं. यह सेक्स का मुख्य बिंदु भी है।
    सूर्य नमस्कार सेक्स हार्मोन्स को और संचालित करता है जिससे सेक्स लाइफ बेहतर होती है. इतना ही नहीं सूर्य नमस्कार का कुंडलिनी योग बायो-एनर्जी के निर्माण में मदद करता है, जो सेक्स हार्मोन्स को संचालित करता है
साभार --  mahashakti

 
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मित्रो हमारे देश मे 3000 साल पहले एक ऋषि हुए जिनका नाम था बागवट जी ! वो 135 साल तक जीवित रहे ! उन्होने अपनी पुस्तक अशटांग हिरद्यम मे स्वस्थ्य रहने के 7000 सूत्र लिखे ! उनमे से ये एक सूत्र राजीव दीक्षित जी की कलम से आप पढ़ें !
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बागवट जी कहते है, ये बहुत गहरी बात वो ये कहते है जब आप भोजन करे कभी भी तो भोजन का समय थोडा निश्चित करें । भोजन का समय निश्चित करें । ऐसा नहीं की कभी भी कुछ भी खा लिया । हमारा ये जो शरीर है वो कभी भी कुछ खाने के लिए नही है । इस शरीर मे जठर है, उससे अग्नि प्रदिप्त होती है । तो बागवटजी कहते है की, जठर मे जब अग्नी सबसे ज्यादा तीव्र हो उसी समय भोजन करे तो आपका खाया हुआ, एक एक अन्न का हिस्सा पाचन मे जाएगा और रस मे बदलेगा और इस रस में से मांस,मज्जा,रक्त,मल,मूत्रा,मेद और आपकी अस्थियाँ इनका विकास होगा ।

हम लोग कभी भी कुछ भी खाते रहते हैं । ये कभी भी कुछ भी खाने पद्ध्ती भारत की नहीं है, ये युरोप की है । युरोप में doctors वो हमेशा कहते रहते है की थोडा थोडा खाते रहो, कभीभी खाते रहो । हमारे यहाँ ये नहीं है, आपको दोनों का अंतर समझाना चाहता हूँ । बागवटजी कहते है की, खाना खाते का समय निर्धरित करें । और समय निर्धरित होगा उससे जब आप के पेट में अग्नी की प्रबलता हो । जठरग्नि की प्रबलता हो । बागवटजी ने इस पर बहुत रिसर्च किया और वो कहते है की, डेढ दो साल की रिसर्च के बाद उन्हें पता चला की जठरग्नि कौन से समय मे सबसे ज्यादा तीव्र होती है । तो वो कहते की सूर्य का उदय जब होता है, तो सूर्य के उदय होने से लगभग ढाई घंटे तक जठरग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है ।

मान लो अगर आप चेन्नई मे हो तो 7 बजे से 9 बजे तक जठरग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होगी । हो सकता है ये इसी सूत्र की  अरूणाचल प्रदेश में बात करूँ तो वो चार बजे से साडे छह का समय आ जाएगा । क्यो कि अरूणाचल प्रदेश में सूर्य 4 बजे निकल आता है । अगर सिक्कीम मे कहूँगा तो 15 मिनिट और पहले होगा, यही बात अगर मे गुजरात मे जाकर कहूँगा तो आपसे समय थोडा भिन्न हो जाएगा तो सूत्रा के साथ इसे ध्यान मे रखे । सूर्य का उदय जैसे ही हुआ उसके अगले ढाई घंटे तक जठर अग्नी सबसे ज्यादा तीव्र होती है । तो बागवटजी कहते है इस समय सबसे ज्यादा भोजन करें ।

बागवटजी ने एक और रिसर्च किया था, जैसे शरीर के कुछ और अंग है जैसे हदय है, जठर,किडनी,लिव्हर है इनके काम करने का अलग अलग समय है ! जैसे दिल सुबह के समय सबसे अधिक काम करता है ! 4 साढ़े चार बजे तक दिल सबसे ज्यादा सक्रीय होता है और सबसे ज्यादा heart attack उसी समय मे आते है । किसी भी डॉक्टर से पूछ लीजीए, क्योकि हदय सबसे ज्यादा उसी समय में तीव्र । सक्रीय होगा तो हदय घात भी उसी समय होगा इसलिए 99 % हार्ट अॅटॅक अर्ली मॉनिंग्ज मे ही होते है । इसलिए तरह हमारा लिव्हर किडनी है, एक सूची मैने बनाई है, बाहर पुस्तको मे है । संकेतरूप मे आप से कहता हूँ की शरीर के अंग का काम करने का समय है, प्रकृती ने उसे तय किया है । तो आप का जठर अग्नी सुबह 7 से 9.30 बजे तक सबसे ज्यादा तीव्र होता है तो उसी समय भरपेट खाना खाईए । 


ठीक है । फिर आप कहेगे दोपहर को भूख लगी है तो थोडा और खा लीजीए । लेकीन बागवट जी कहते है की सुबह का खाना सबसे ज्यादा । अगर आज की भाषा में अगर मे कहूँ तो आपका नाष्टा भरपेट करे । और अगर आप दोपहर का भोजन आप कर रहे है तो बागवटजी कहते है की, वो थोडा कम करिए नाश्ते से थोडा 1/3 कम कर दीजीए और रात का भोजन दोपहर के भोजन का 1/3 कर दीजीए । अब सीधे से आप को कहता हूँ । अगर आप सवेरे 6 रोटी खाते है तो दोपहर को 4 रोटी और शाम को 2 रोटी खाईए । अगर आप को आलू का पराठा खाना है आपकी जीभ स्वाद के लिए मचल रही है तो बागवटजी कहते है की सब कुछ सवेरे खाओ, जो आपको खानी है सवेरे खाओ, हाला की अगर आप जैन हो तो आलू और मूली का भी निषिध्द है आपके लिए फिर अगर जो जैन नहीं है, उनके लिए ? आपको जो चीज सबसे ज्यादा पसंद है वो सुबह आओ । रसगुल्ला , खाडी जिलेबी, आपकेा पसंद है तो सुबह खाओ । वो ये कहते हे की इसमें छोडने की जरूरत नहीं सुबह पेट भरके खाओ तो पेट की संतुष्टी हुई , मन की भी संतुष्टी हो जाती है । और बागवटजी कहते है की भोजन में पेट की संतुष्टी से ज्यादा मन की संतुष्टी महत्व की है।

मन हमारा जो है ना, वो खास तरह की वस्तुये जैसे , हार्मोन्स , एंझाईम्स से संचालित है । मन को आज की भाषा में डॉक्टर लोग जो कहते हैं , हाला की वो है नहीं लेकिन डाक्टर कहते हैं मन पिनियल गलॅंड हैं ,इसमे से बहुत सारा रस निकलता है । जिनको हम हार्मोन्स ,एंझाईम्स कह सकते है ये पिनियल ग्लॅंड (मन )संतुष्टी के लिए सबसे आवश्यक है , तो भोजन आपको अगर तृप्त करता है तो पिनियललॅंड आपकी सबसे ज्यादा सक्रीय है तो जो भी एंझाईम्स चाहीए शरीर को वो नियमित रूप मंे समान अंतर से निकलते रहते है । और जो भोजन से तृप्ती नहीं है तो पिनियल ग्लॅंड मे गडबड होती है । और पिनियल ग्लॅंड की गडबड पूरे शरीर मे पसर जाती है । और आपको तरह तरह के रोगो का शिकार बनाती है । अगर आप तृप्त भोजन नहीं कर पा रहे तो निश्चित 10-12 साल के बाद आपको मानसिक क्लेश होगा और रोग होंगे । मानसिक रोग बहुत खराब है । आप सिझोफ्रनिया डिप्रेशन के शिकार हो सकते है आपको कई सारी बीमारीया ,27 प्रकार की बीमारीया आ सकती है , । कभी भी भोजन करे तो, पेट भरे ही ,मन भी तृप्त हो । ओर मन के भरने और पेट के तृप्त होने का सबसे अच्छा समय सवेरे का है ।
अब मैने(राजीव भाई ने ) ये बागवटजी के सूत्रों को चारो तरफ देखना शुरू किया तो मुझे पता चला की मनुष्य को छोडकर जीव जगत का हर प्राणी इस सूत्रा का पालन कर रहा है । मनुष्य अपने को होशियार समझता है । लेकिन मनुष्य से ज्यादा होशियारी जीव जगत के प्राणीयों मे है । आप चिडीया को देखो, कितने भी तरह की चिडीये, सबेरे सुरज निकलते ही उनका खाना शुरू हो जाता है , और भरपेट खाती है । 6 बजे के आसपास राजस्थान, गुजरात में जाओ सब तरह की चिडीया अपने काम पर लग जाती है। खूब भरपेट खाती है और पेट भर गया तो चार घंटे बाद ही पानी पीती है । गाय को देखिए सुबह उठतेही खाना शुरू हो जाता है । भैंस, बकरी ,घोडा सब सुबह उठते ही खाना खाना शुरू करंगे और पेट भरके खाएँगे । फिर दोपहर को आराम करेंगे तो यह सारे जानवर ,जीवजंतू जो हमारी आँखो से दीखते है और नही भी दिखते ये सबका भोजन का समय सवेरे का हैं । सूर्योदय के साथ ही थे सब भोजन करते है । इसलिए, थे हमसे ज्यादा स्वस्थ रहते है । 

मैने आपको कई बार कहा है आप उस पर हँस देते है किसी भी चिडीया को डायबिटीस नही होता किसी भी बंदर को हार्ट अॅटॅक नहीं आता । बंदर तो आपके नजदीक है ! शरीर रचना मे बस बंदर और आप में यही फरक है की बंदर को पूछ है आपको नहीं है बाकी अब कुछ समान है । तो ये बंदर को कभी भी हार्ट अॅटॅक, डासबिटीस ,high BP ,नहीं होता । 

मेरे एक बहुत अच्छे मित्र है, डॉ. राजेंद्रनाथ शानवाग । वो रहते है कर्नाटक में उडूपी नाम की जगह है वहाँपर रहते है । बहुत बडे ,प्रोफेसर है, मेडिकल कॉलेज में काम करते है । उन्होंने एक बडा गहरा रिसर्च किया ।की बंदर को बीमार बनाओ ! तो उन्होने तरह तरह के virus और बॅक्टेरिया बंदर के शरीर मे डालना शुरू किया, कभी इंजेक्शन के माध्यम से कभी किसी माध्यम से । वो कहते है, मैं 15 साल असफल रहाँ । बंदर को कुछ नहीं हो सकता । और मैने कहा की आप ये कैसे कह सकते है की, बंदर कुछ नहीं हो सकता , तब उन्हांने एक दिन रहस्य की बात बताई वो आपको भी ,बता देता हूँ । की बंदर का जो है न RH factor दुनिया में ,सबसे आदर्श है, और कोई डॉक्टर जब आपका RH factor नापता है ना ! तो वो बंदर से ही कंम्पेअर करता है , वो आपको बताता नहीं ये अलग बात है । कारण उसका ये है की, उसे कोई बीमारी आ ही नहीं सकती । ब्लड मे कॉलेस्टेरॉल बढता ही नहीं । ट्रायग्लेसाईड कभी बढती नहीं डासबिटीस कभी हुई नहीं । शुगर कितनी भी बाहर से उसके शरीर मे डंट्रोडयूस करो, वो टिकती नहीं । तो वो प्रोफेसर साहब कहते है की, यार ये यही चक्कर है ,की बंदर सवेरे सवेरेही भरपेट खाता है । जो आदमी नहीं खा पाता । 

तो वो प्रोफेसर रवींद्रनाथ शानवागने अपने कुछ मरींजों से कहा की देखो भया , सुबह सुबह भरपेट खाओ ।तो उनके कई मरीज है वो मरीज उन्हे बताया की सुबह सुबह भरपेट खाना खाओ तो उनके मरीज बताते है की, जबसे उन्हांने सुबह भरपेट खाना शुरू किया तो , डासबिटीस माने शुगर कम हो गयी, किसी का कॉलेस्टेरॉल कम हो गया, किसी के घटनों का दर्द कम हो गया कमर का दर्द कम हो गया गैस बनाना बंद हो गई पेट मे जलन होना, बंद हो गयी नींद अच्छी आने लगी ..... वगैरा ..वगैरा । और ये बात बागवटजी 3500 साल पहले कहते ये की सुबह की खाना सबसे अच्छा । माने जो भी स्वाद आपको पसंद लगता है वो सुबह ही खाईए ।
तो सुबह के खाने का समय तय करिये । तो समय मैने आपका बता दिया की, सुरज उगा तो ढाई घंटे तक । माने 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा 10 बजे तक आपक भोजन हो जाना चाहिए । और ये भोजन तभी होगा जब आप नाश्ता बंद करेंगे । ये नाष्ता हिंदुस्थानी चीज नहीं है । ये अंग्रेजो की है और आप जानते है हमारे यहाँ क्या चक्कर चल गया है , नाष्टा थोडा कम, करेंगे ,लंच थोडा जादा करेंगे, और डिनर सबसे ज्यादा करेंगे । सर्वसत्यानाष । एकदम उलटा बागवटजी कहेते है की, नाष्टा सबसे ज्यादा करो लंच थोडा कम करो और डिनर सबसे कम करो । हमारा बिलकूल उलटा चक्कर चल रहा है !

ये अग्रेज और अमेरिकीयो के लिए नाष्टा सबसे कम होता है कारण पता है ??वो लोग नाष्टा हलका करे तो ही उनके लिए अच्छा है। हमारे लिए नाष्टा ज्यादा ही करना बहूत अच्छा है । कारण उसका एकही है की अंग्रेजो के देश में सूर्य जलदी नही निकलता साल में 8-8 महिने तक सूरज के दर्शन नहीं होते और ये जठरग्नी है । नं ? ये सूरज के साथ सीधी संबंध्ति है जैसे जैसे सूर्य तीव्र होगा अग्नी तीव्र होगी । तो युरोप अमेरिका में सूरज निकलता नहीं -40 तक . तापमान चला जाता है 8-8 महिने बर्फ पडता है तो सूरज नहीं तो जठरग्नी तीव्र नहीं हो सकती तो वो नाष्टा हेवियर नही कर सकते करेंगे तो उनको तकलीफ  हो जाएँगी !

अब हमारे यहाँ सूर्य हजारो सालो से निकलता है और अगले हजारो सालों तक निकलेगा ! तो हमने बिना सोचे उनकी नकल करना शुरू कर दिया ! तो बाग्वट जी कहते है की, सुबह का खाना आप भरपेट खाईए । ? फिर आप इसमें तुर्क - कुतुर्क मत करीए ,की हम को दुनिया दारी संभालनी है , किसलिए ,पेट के लिए हीं ना? तो पेट को दूरूस्त रखईये , तो मेरा कहना है की, पेट दुरूस्त रखा तो ही ये संभाला तोही दुनिया दारी संभलती है और ये गया तो दुनिया दारी संभालकर करेंगे क्या?

मान लीजिए, पेट ठीक नहीं है , स्वास्थ ठीक नहीं है , आप ने दस करोंड कमा लिया क्या करेंगे, डॉक्टर को ही देगे ना ? तो डॉक्टर को देने से अच्छा किसी गोशाला वाले को दिजीए ;और पेट दुरूस्त कर लिजिए । तो पेट आपका है तो दुनिया आपकी है । आप बाहर निकलिए घरके तो सुबह भोजन कर के ही निकलिए । दोपहर एक बजे में जठराग्नी की तीव्रता कम होना शुरू होता है तो उस समय थोडा हलका खाए माने जितना सुबह खाना उससे कम खाए तो अच्छा है। ना खाए तो और भी अच्छा । खाली फल खायें , ज्यूस दही मठठा पिये । शाम को फिर खाये । 

अब शाम को कितने बजे खाएं ?

तो बाग्वट जी कहते हैं हमे प्रकति से बहूत सीखने की जरूरत हैं । दीपक । भरा तेल का दीपक आप जलाना शुरू किजीए । तो पहिली लौ खूप तेजी से चलेगी और अंतिम लव भी तेजी से चलेगी माने जब दीपक बूजने वाला होगा, तो बुझने से पहले ते जीसे जलेगा , यही पेट के लिए है । जठरग्नी सुबह सुबह बहूत तीव्र होगी और शमा को जब सूर्यास्त होने जा रहा है, तभी तीव्र होगी, बहुत तीव्र होगी । वो कहते है , शामका खाना सूरज रहते रहते खालो; सूरज डूबा तो अग्नी भी डूबी । तो वैसे जैन दर्शन में कहा है सभी भोजन निषेध् है बागवटजी भी यही कहते है ,तरीका अलग है ,बस । जैन दर्शन मे अहिंसा के लिए कहते है,वो स्वास्थ के लिए कहेते है । तो शाम का खाना सूरज डुबने की बाद दुनिया में ,कोई नहीं खाता । गाय ,भैंस को खिलाके देखो नहीं खाएगी ,बकरी ,गधे को खिलाके देखो, खाता नहीं । हा बिलकूल नहीं खाता । आप खाते है , तो आप अपने को कंम्पेअर कर लीजीए किस के साथ है आप ? कोई जानवर, जीवटाशी सूर्य डूबने के बाद खाती नही ंतो आप क्यू खा रहे है ? 

प्रकृती का नियम बागवटजी कहते है की पालन करे  और रात का खाना जल्दी कर दीजिए ।

सूरज डुबने के पहले 5.30 बजे - 6 बजे खायिए । अब कितना पहले ? बागवट जीने उसका कॅल्क्यूलेशन दिया है, 40 मिनिट पहले सूरज चेन्नई से शाम 7 बजे डूब रहा है । तो 6.20 मिनट तक हिंदूस्थान के किसी भी कोने में जाईए सूरज डूबने तक 40 मिनिट तक निकलेगा । तो 40 मिनिट पहले शाम का खाना खा लिजीए और सुबह को सूरज निकलने के ढाई घंटे तक कभी भी खा लीजीए । दोनो समय पेट भरके खा लिजिए । फिर कहेंगे जी रात को क्या ? तो रात के लिए बागवटजी कहेते है की, एक ही चीज हैं रात के लिए की आप कोई तरल पदार्थ ले सकते है । जिसमे सबसे अच्छा उन्होंने दूध कहा हैं । बागवटजी कहते है की, शाम को सूरज डूबने के बाद ‘हमारे पेट में जठर स्थान में कुछ हार्मोन्स और रस या एंझाईम पैदा होते है जो दूध् को पचाते है’ । इसलिए वो कहते है सूर्य डूबने के बाद जो चीज खाने लायक है वो दूध् है । तो रात को दूध् पी लीजीऐ । सुबह का खाना अगर आपने 9.30 बजे खाया तो 6.00 बजे खूब अच्छे से भूक लगेगी ।

फिर आप कहेंगे जी, हम तो दुकान पे वैठे है 6 बजे तो डब्बा मँगा लीजिए । दुकान में डिब्बा आ सकता है । हाँ दुकान में आप बैठे है, 6 बजे डब्बा आ सकता है और मैं आपको हाथ जोडकर आपसे कह रहाँ हूँ की आप मेरे से अगर कोई डायबिटीक पेशंट है, कोई भी अस्थमा पेशंट है, किसी को भी बात का गंभीर रोग है आज से ये सूत्रा चालू कर दिजीए । तीन महिने बाद आप खुद मुझे फोन करके कहंगे की, राजीव भाई, पहले से बहुत अच्छा हूँ sugar level मेरा कम हो रहा है । अस्थमा कम हो रहा है। ट्रायग्लिसराईड चेक करा लीजीए, और सूत्रा शुरू करे, तीन महीने बाद फिर चेक करा लीजीए, पहले से कम होगा, LDL बहुत तेजी से घटेगा ,HDL बढ़ेगा । HDL बढना चाहिए, LDL VLDL कम होना ही चाहिए । तो ये सूत्रा बागवटजी का जितना संभव हो आप ईमानदारी से पालन करिए वो आपको स्वस्थ रहने में बहुत मदद करेगा !!

आपका राजीव
 
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आहार जीवन के तीन आधार स्तंभों में पहला है। दूसरे स्तंभ हैं शयन तथा ब्र±मचर्य। सृष्टि के एक कोशिकीय जीव से लेकर श्रेष्ठतम रचना मानव सभी अपने अनुरूप आहार लेते हैं। पौष्टिक शक्तिवर्घक तृप्ति देने वाला, पाचन शक्ति और भोजवर्घक आहार को हिताहार कहते हैं। स्वाद के लिए हम ऎसा भोजन भी कर लेते हैं जो शारीरिक, आर्थिक और मानसिक क्षति के कुछ नहीं देता



घी खाना नहीं है वर्जित

हिताहार भी सीमित मात्रा में हो और शाकप्रधान नहीं हो। शाक पत्र शाक पालक आदि कहलाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में लिखा है- रम्या: स्निग्धा स्थिराद्धा आहारा: सात्विक प्रिया।

आज के कर्महीन जीवन में डॉक्टर वसा सेवन को प्रतिबंधित करते हैं पर अगर मानव शारीरिक श्रम, भ्रमण, करता रहे तो घी का सेवन अनुकूल है। आराम तलब मशीनी जीवन मोटापा बढ़ाता है। भोजन का कार्य रस रक्त से ओज की वृद्धि, शरीर का विकास, क्षतिपूर्ति, शरीर की उष्णता व बल बनाए रखना और जीवन शक्ति को स्थिर बनाए रखना है।

शाकाहार और मांसाहार


संसार में बहुमत मांसाहारियों का है। प्रसिद्ध शाकाहारी संस्कृति के लोग भी चोरी छिपे या अन्य तरीकों से मांसाहार कर लेते हैं। आधुनिक विज्ञान तो दूध, पनीर, घी, दही आदि को भी प्राणीजन्य होने से मांसाहार मानता है पर हम भारतीय नहीं। मांसाहार में रेड मीट, फिश, अंडा, सीफूड आदि शामिल है। शाकाहार में भोजन द्रव्यों को चार भागों में बांटा जाता है-

शरीर का विकास व क्षतिपूर्तिकारक जैसे-दूध, दही, पनीर, मांस, मछली, अंडा आदि। उष्माप्रदायक व रक्षक- अन्न, आलू, चीनी। शक्तिदाता व संग्रहकर्ता- घी, तेल, मक्खन, सूखे मेवे, वसा, मज्जा आदि। भोजन के पाचन में सहयोगी- जल व पेय पदार्थ, खनिज, लवण, पाचक रस, और विटामिन्स।

विदेशी आक्रमणों, नौ सौ वष्ाü की गुलामी तथा स्वतंत्रता से अब तक की विदेशों की नकल व बेकार खाद्य नीति के कारण भारत विश्व के सर्वाधिक कुपोçष्ात देशों में से एक है। भारतीय अपने भोजन में अन्न के रूप में गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा, जौ, रागी, आदि उयोग करते हैं। हम इनकी मैदा बनाकर या मिलों से कूटपॉलिश कर इनके पोष्ाक तत्वों को नष्ट कर देते हैं।

अन्न का दूसरा वर्ग दालें हैं। चना, अरहर, मूंग, मोठ, मसूर, उड़द, सोयबीन, मटर, चना, कुलथी तथा प्रतिबंधित खेसारी दालें हैं। दालें शाकाहारियों के प्रोटीन का प्रमुख स्त्रोत है। इनके साथ तिलहन प्रमुख रूप से तेल का स्त्रोत हैं। तिल, सरसों, नारियल, अखरोट, मूंगफली, सोयाबीन, अलसी, राई, बादाम, पिस्ता, काजू,अखरोट, जैतून, मछली, आदि प्रमुख भोजन अवयव हैं।

फलों, पत्रशाकों तथा सब्जियों कंदशाक की अत्यंत विशाल श्रृंखला हमारा आहार है। इनसे शरीर के स्थायित्व तथा स्वास्थ्य रक्षा के आवश्यक तत्व प्रोटीन, कार्ब्स, फैट, सॉल्ट, और विटामिन्स शरीर को मिलते हैं।

बारीक चीजें हैं हेय


प्रकृति ने भारतीय फसलों में कुछ अद्धितिय गुणों से संपन्न रत्न प्रदान किए हैं जैसे- आंवला, अदरक, लहसुन, नीबू, अनार, अंगूर, कद्दू, सभी मसाले, बादाम, अखरोट, हरड़। कुछ भोजन के काम नहीं आते जैसे नीम।

विश्व की सभी स्वास्थ्य परंपराएं बारीक पीसे, काटे, कुचले गए आहार पदाथोंü को अनुपयोगी मानती है इसलिए दैनिक जीवन में सर्वाधिक प्रयुक्त होने के बावजूद बारीक आटा, बारीक कुटे चावल, भिगोकर पीसी दालों को हेय मानते हैं। कार्तिक में पैदा हुआ लालिमायुक्त चावल श्रेष्ठ है। खेत से एक अंकुर रूप में उत्पन्न होने वाले अन्न में सर्वोत्तम एक वष्ाü पुराना लाल गेंहू है। चावल भी पुराने अच्छे होते हैं।

मूंग की बिना धुली दाल, दूध में जीवित वत्सा भारतीय नस्ल की गाय का दूध-घी, ताजा मक्खन, तिल्ली का तेल, सेंधा नमक, अंगूर, फालसा, अनार, सब्जियों में परवल, कंद द्रव्यों में आलू, मूली, चुकंदर, रस में शहद, गन्ना, मिश्री, आंवला, बड़ी हरड़, हींग, लहसुन अपने-अपने वर्ग में श्रेष्ठ हैं।

बेमेल जोड़ी


मांसाहार के साथ शहद, गुड़, तिल, उड़द, मूली, कमलनाल व अंकुरित अन्न न खाएं। दूध के साथ मछली न लें। दूध के साथ सभी तरल, ठोस, खट्टे आहार कांगनी, कुलथी, मोठ तथा बींस न खाएं। हरी मूली, लहसुन पत्तेदार, सभी तरह के नमक, बराबर मात्रा में घी व शहद, सरसों के तेल में भुना कबूतर, मछली, सूअर का मांस, कांजी में डूबी तिल की कचौरी, मूली के साथ उड़द, मक्खन, गुड़, शहद और घी अंकुरित अन्न के साथ दही, केले के साथ कालीमिर्च व पीपल आदि का सेवन न करें।

बारिश में खन-पान


सावन-भादो में खिचड़ी, गेहूं का दलिया, लापसी, आटे का हलवा, रोटी, उड़द-चौले के अलावा दूसरी दालें, सूखी सब्जियां जैसे मंगोड़ी, बड़ी, पंचकुटा, कैर-सांगरी, ऊंचे पेड़ों पर उगे फल- आम, जामुन, बेल, आंवला, मसालों में सेंधा नमक, अमचूर, इमली, सौंफ, जीरा, हींग सौंठ गर्म मसाले, नीबू हरी मिर्च, केला, दही, छाछ लें। चाय में सौंठ काली मिर्च तुलसी का सेवन करें। थोड़ी मात्रा में अचार, नीबू आदि लें।


वैद्य हरिमोहन शर्मा

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